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कविता संग्रह >> धूप, गंध, चाँदनी

धूप, गंध, चाँदनी

घनश्याम गुप्ता...

प्रकाशक : शिवना प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4224
आईएसबीएन :0000

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घनश्याम गुप्ता, बीना टोडी, राकेश खण्डेलवाल, अर्चना पंडा तथा डॉ. विशाखा ठाकर ‘अपराजिता’ का काव्य संग्रह...

Dhoop, Gandh, Chandni

ग़ज़ल की गंध, धूप सा गीतों का रंग और चाँदनी का छिटकापन : धूप, गंध और चाँदनी

‘धूप, गंध, चाँदनी’ प्रवासी भारतीय हिंदी सुतों का वह पंच नाद है जिसे भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में पांचजन्य के निनाद से निनादित किया। भारत की पंच नद की कल कल करती सरिताओं का अद्भुत संगम, पांच देवों का प्रादुर्भाव, पंचतत्त्व के दैहिक रूपांतरण का दूसरा नाम है ‘धूप, गंध, चाँदनी’। ‘धूप, गंध, चाँदनी’ में मातृ शक्ति त्रिवेणी अर्चना पंडा, विशाखा ठाकर एवं बहन बीना टोडी ने अपने मन की कल कल करती काव्य सरिता से हिंदी के इस उपवन को सात समंदर पार रहकर भी इस आपाधापी भरे युग में सिरजा है। उनका ये अदम्य साहस मरुस्थल में मरुद्यान के समान है। वहीं भाई राकेश खंडेलवाल जी एवं भाई घनश्याम दास गुप्ता जी ने आज के मशीनी युग में काव्य सिरज कर हिंदी का मान बढ़ाया है। माँ भारती के लिए उनकी ये ललक, चुम्बकीय गुरुत्वाकर्षण, उन्हें बार बार अपने स्वदेश की ओर खींचता है और वे काव्य सृजन के माध्यम से उड़ जहाज का पंछी उड़ जहाज पर आवे की ध्रुव पंक्तियों को चरितार्थ करते हैं। माँ वागेश्वरी की अनुकंपा इन भारतवंशियों पर इसी प्रकार बनी रहे, फक्कड़ कबीर की लेखनी इसी प्रकार चाबुक चलाती रहे, नीलकंठ की तरह हमेशा विषपान कर दुनिया को काव्य पान कराने का इनका उद्देश्य सार्थकता की ओर अग्रसर हो।


मैं भी इक दिन गीत लिखूँगा

इक दिन मैं भी लिखूँगा कविता
मैं भी इक दिन गीत लिखूँगा

अभी आजकल बहुत व्यस्त हूँ समय नहीं बिल्कुल मिल पाता
एक निमिष भी हाथ न लगता जिसमें कुछ नग्मे गा पाता
पाँच जॉब में व्यस्त आजकल ऐसी कुछ मेरी दुनिया है
सिवा मेरे हर किसी को कविता लिखने की सुविधा है
छोड़ नौकरी जब आऊँगा
तब स्वर्णिम संगीत लिखूँगा
इक दिन मैं भी गीत लिखूँगा

पहला जॉब नौकरी मेरी जो दस घण्टे ले जाती है
और दूसरा मेरी बीवी जो बाकी दिन हथियाती है
तीजा चौथा सोशल और वौलन्ट्री काम मेरा होता है
और पाँचवाँ बच्चों की फरमाईश जिसमें मन खोता है
हार रहा हूँ रोज समय से
इक दिन अपनी जीत लिखूँगा
मैं भी इक दिन गीत लिखूँगा

नाटक मुझको लिखने होते लिखने पड़ते कई सिलेबस
और किचन का काम हमेशा मुझको कर जाता है बेबस
रोज फोन पर मुझे दोस्तों से भी बाते करनी होतीं
दिन के साथ ऐसे ही मेरी सारी रातें खोतीं
दादी नानी ने सिखलाई
जो मुझको वह रीत लिखूँगा
इक दिन मैं भी गीत लिखूँगा


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